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हम विकास की ओर जा रहे हैं या नहीं ?

“ प्रतिक्रिया ”
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एक विकासशील देश का यह प्रयत्न होना चाहिए कि वह जितनी जल्दी हो विकसित हो, उस की अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हो। लेकिन साथ ही यह प्रश्न भी है कि यह विकास किस के लिए हो? किसी भी देश की जनता के लिए भोजन, वस्त्र, आवास, स्वास्थ्य व चिकित्सा तथा शिक्षा प्राथमिक आवश्यकताएँ हैं। विकास की मंजिलें चढ़ने के साथ साथ यह देखना भी आवश्यक है कि इन सब की स्थितियाँ देश में कैसी हैं? वे भी विकास की ओर जा रही हैं या नहीं? और विकास की ओर जा रही हैं तो फिर उन के विकास की दिशा क्या है? देश की 65-70 प्रतिशत आबादी आज भी कृषि पर निर्भर है जिस की आय में वृद्धि होने के स्थान पर वह घट रही है। उस की खरीद क्षमता घट रही है। वह रोजमर्रा की जरूरतों भोजन, वस्त्र, चिकित्सा और स्वास्थ्य तथा शिक्षा पर उतना खर्च नहीं कर पा रहा है जितना उसे खर्च करना चाहिए। स्पष्ट है कि हमारे उन उद्योगों का विकास भी अवरुद्ध हो रहा है जो किसानों की खरीद पर निर्भर है। उन का बाजार सिकुड़ रहा है। देश की सरकार आर्थिक संकट के लिए अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों को बाजार की सिकुड़न के लिए जिम्मेदार बता कर किनारा करती नजर आती हैकिसान को खेती के लिए खाद, बीज, बिजली, डीजल और आवश्यकता पड़ने पर मजदूर इन सब के मूल्यों में प्रत्येक वर्ष वृद्धि हो रही है, खेती का खर्च हर साल बढ़ता जा रहा है लेकिन उस की उपज? जब वह उसे बेचने के लिए निकलता है तो उस के दाम उसे उतने ही मिलते हैं। नतीजा साफ है, किसानों की क्रय क्षमता घट रही है। पैसा खाद, बीज पेस्टीसाइडस् बनाने वाली कंपनियों और रिश्वतखोर अफसरों की जेब में जा रहा है। लेकिन इस बात की चिंता किसी राजनैतिक दल को नहीं है कि वह देश की इस 65-70 प्रतिशत आबादी की क्रय क्षमता को किस तरह बनाए रखे अपितु उसे विकसित करे। देश के उद्योंगों का विकास और देस की अर्थ व्यवस्था इसी आबादी की खरीद क्षमता पर निर्भर करती है। कोई राजनैतिक दल इस समय इस के लिए चिंतित दिखाई नहीं देता। इस समय राजनैतिक दलों को केवल एक चिंता है कि क्या तिकड़म की जाए कि जनता के वोट मिल जाएँ और किसी तरह सत्ता में अपनी अच्छी हिस्सेदारी तय की जा सके।

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